सावधान! क्यों समय से पहले हो सकता है आपके बच्चे का जन्म, स्टडी ने गर्भवती महिलाओं को डराया!

Health

Pregnancy Risk: जब गर्भवती महिलाएं प्रदूषित हवा में मौजूद छोटे-छोटे जहरीले कणों को सांस के जरिए अपने शरीर में लेती हैं, तो उनके शरीर की मेटाबॉलिज्म यानी चयापचय की प्रक्रिया प्रभावित हो जाती है. इसका असर शरीर के कई जरूरी कामों पर पड़ता है और बच्चे का समय से पहले जन्म लेने का खतरा बढ़ जाता है.

समय से पहले जन्म और इसके खतरे

अमेरिका के एमोरी विश्वविद्यालय के शोध में यह पाया गया है कि मेटाबॉलिज्म में ये बदलाव न सिर्फ बच्चे के समय से पहले जन्म लेने की संभावना बढ़ाते हैं, बल्कि इससे बच्चे को सांस की तकलीफ, सेरेब्रल पाल्सी जैसी बीमारियां और लंबी अवधि की अन्य स्वास्थ्य समस्याएं भी हो सकती हैं. खासकर अगर बच्चा गर्भावस्था के 37 से 39 हफ्ते के बीच जन्म लेता है, तो उसके विकास पर भी बुरा असर पड़ सकता है.

शोधकर्ताओं ने क्या बताया है?

एमोरी विश्वविद्यालय के डॉ. डोंगहाई लियांग, जो पर्यावरण स्वास्थ्य के विशेषज्ञ हैं, कहते हैं कि पहले से पता था कि प्रदूषित हवा और समय से पहले जन्म के बीच संबंध है, लेकिन इस अध्ययन ने यह समझने में मदद की है कि ये छोटे कण शरीर में कैसे असर डालते हैं और खतरे को बढ़ाते हैं. इस शोध में 330 गर्भवती महिलाओं के खून के नमूनों का विश्लेषण किया गया. इनमें दो खास पदार्थ — कॉर्टेक्सोलोन और लाइसोपीई — पाए गए, जो प्रदूषित हवा और समय से पहले जन्म के बीच संबंध दिखाते हैं. ये पदार्थ बताते हैं कि वायु प्रदूषण कैसे समयपूर्व बच्चे के जन्म को बढ़ावा देता है.

शरीर पर प्रदूषण का असर

दुनिया भर के आंकड़ों के मुताबिक, लगभग 10 प्रतिशत समय से पहले जन्म लेने वाले बच्चे वायु प्रदूषण में मौजूद सूक्ष्म कणों के कारण पैदा होते हैं. शोध में यह भी पाया गया कि प्रदूषित हवा शरीर में प्रोटीन के पचने और अवशोषित होने की प्रक्रिया को प्रभावित करती है, जो बच्चे के विकास और उसके प्रतिरक्षा तंत्र के लिए बहुत जरूरी है. यह अध्ययन वायु प्रदूषण और समय से पहले जन्म के बीच के जुड़ाव को समझने में मदद करता है और इससे बचाव के नए तरीके सुझाता है.

रिपोर्ट के नतीजे और आगे की राह

330 महिलाओं में से 66 यानी लगभग 20 फीसदी ने समय से पहले बच्चे को जन्म दिया, जो सामान्य स्तर से अधिक है. शोधकर्ता बताते हैं कि वायु प्रदूषण के इन प्रभावों को समझना बेहद जरूरी है. डॉ. लियांग का कहना है कि भविष्य में इन असर करने वाले अणुओं को निशाना बनाकर ऐसी तकनीक या इलाज विकसित किए जा सकते हैं, जो इन नकारात्मक परिणामों को कम कर सकें.

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