“दूसरों को दिखाने के लिए मत जियो, जो अपने हैं, वो जानते हैं कि तुम कौन हो.” यह एक साधारण सी पंक्ति दुबई के फार्मा टायकून विनोद जाधव की सोच और जीवन का असली परिचय देती है. एक सरकारी स्कूल के शिक्षक के बेटे से लेकर 700 मिलियन दिरहम टर्नओवर वाली फार्मा कंपनी के मालिक बनने तक का उनका सफर न सिर्फ प्रेरणादायक है, बल्कि यह दिखाता है कि ज़मीन से जुड़े रहकर भी ऊंचाइयों को छूआ जा सकता है.
बचपन से ही शुरू हुआ संघर्ष
पुणे में एक सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले विनोद का बचपन बहुत ही सामान्य था. महंगे स्कूल या किसी पॉश इलाके की परवरिश नहीं थी. परवरिश के साथ जो सबसे मजबूत विरासत उन्हें मिली, वह थी मेहनत की आदत और ईमानदारी की सोच. मैकेनिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा के बाद उन्होंने करीब 13 साल तक कई इंडस्ट्रीज़ में लंबा काम किया. गल्फ न्यूज से बात करते हुए वो कहते हैं, “ये 13 साल नहीं, 20 साल के बराबर थे. मैं रोज़ 12–15 घंटे काम करता था.”
5000 से शुरू हुआ सफर
2001 में विनोद ने अपने और एक पार्टनर के साथ मिलकर महज 5,000 रुपये की पूंजी से भारत में एक फार्मेसी फ्रेंचाइज़ी शुरू की. उनकी पत्नी दिन में दुकान संभालती थीं और शाम को वो. 2003 में उन्होंने 2,500 में एक छोटा क्लासिफाइड ऐड दिया, जो फिजी से पहला एक्सपोर्ट ऑर्डर लेकर आया. यहीं से इंटरनेशनल फार्मा वेंचर की नींव पड़ी.
दुबई से मिली सपनों को उड़ान
एक्सपोर्ट से जुड़े सख्त भारतीय नियमों के कारण 2007 में विनोद दुबई आए. दुबई ने उन्हें वही इंफ्रास्ट्रक्चर और स्पीड दी, जिसकी उन्हें ज़रूरत थी. धीरे-धीरे कंपनी ने वेटरनरी और हर्बल मेडिसिन के क्षेत्र में भी कदम रखा. आज उनकी कंपनी Sava Vet भारत में छोटे जानवरों की दवाओं में सबसे बड़ा ब्रांड है, जिसके पास 20 फीसदी मार्केट शेयर है.
दुबई हिल्स में 40,000 स्क्वायर फीट का महल
आज विनोद दुबई हिल्स एस्टेट में एक 40,000 स्क्वायर फीट का आलीशान घर रखते हैं. यह महल शोरशराबे से नहीं, बल्कि भारतीय और अरब वास्तुकला की सुंदरता और शांति का प्रतीक है. इसमें भव्यता तो है, लेकिन दिखावा नहीं. यह उस सोच का प्रतीक है कि सफलता चुपचाप भी जी जा सकती है.
पैसे का मतलब, सिर्फ कमाई नहीं
विनोद का मानना है कि जब आपकी मूलभूत ज़रूरतें पूरी हो जाती हैं, तब असली सवाल ये होता है कि आप कितनों की ज़िंदगी बदल पा रहे हैं? उन्होंने अपने लिए लक्ष्य तय किया है कि वह 10,000 लोगों को रोजगार देंगे. फिलहाल वो 1,000 नौकरियों तक पहुंच चुके हैं.
नाकामी भी आई, लेकिन सीख बनी ताकत
2010 में उन्होंने एक मार्केटिंग कंपनी शुरू की, जिसमें 800 लोग थे. लेकिन कंपनी फ्लॉप हो गई और करोड़ों का नुकसान हुआ. तब उन्होंने सीखा कि अगर आपके पास कुछ अनोखा देने को नहीं है, तो बिज़नेस का कोई मतलब नहीं. इस सीख ने उन्हें अगले वेंचर में सफल बना दिया.
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