दिल्ली एम्स में पहली बार आंखों के कैंसर का इलाज गामा नाइफ रेडिएशन तकनीक से किया गया. आंखों के इस कैंसर को रेटिनोब्लास्टोमा कहा जाता है, जो पांच साल से कम उम्र के बच्चों को अपना शिकार बनाता है. दिल्ली एम्स ने 4 साल के बच्चे की आंखों का यह ऑपरेशन 15 मई के दिन किया. अब सवाल उठता है कि गामा नाइफ से कैंसर का इलाज कैसे होता है और यह कितना सुरक्षित होता है?
कैसे काम करता है गामा नाइफ?
गामा नाइफ एक एडवांस्ड रेडियोसर्जरी तकनीक है. इसमें गामा किरणों की सटीक बीम का इस्तेमाल करके ब्रेन ट्यूमर, मेटास्टेटिक ट्यूमर और अन्य न्यूरोलॉजिकल दिक्कतों जैसे ट्राइजेमिनल न्यूराल्जिया और आर्टेरियोवेनस मालफॉर्मेशन (AVM) का इलाज किया जाता है. इस तकनीक में पारंपरिक सर्जरी की तरह स्कल (खोपड़ी) को खोलने या चीरा लगाने की जरूरत नहीं पड़ती. इसमें सटीक रेडिएशन बीम्स इस्तेमाल करके ट्यूमर को नष्ट कर दिया जाता है और उसके आसपास मौजूद हेल्दी टिशूज को कोई नुकसान नहीं होता है.
क्या किसी तरह का चाकू होता है गामा नाइफ?
गामा नाइफ का नाम सुनकर लग सकता है कि इसमें किसी चाकू का इस्तेमाल होता है, जबकि ऐसा नहीं है. यह पूरी तरह से गैर-आक्रामक (नॉन-इनवेसिव) प्रक्रिया है. इस तकनीक को सबसे पहले 1960 के दशक में स्वीडन के न्यूरोसर्जन लार्स लेक्सेल ने डिवेलप किया था.
गामा नाइफ से कैसे होता है कैंसर का इलाज?
गामा नाइफ रेडियोसर्जरी की प्रक्रिया कई स्टेज में पूरी होती है. इसमें सबसे पहले मरीज के सिर पर एक हल्का स्टीरियोटैक्टिक हेड फ्रेम लगाया जाता है, जो सिर को स्थिर रखता है और रेडिएशन बीम्स को सटीक निशाना लगाने में मदद करता है. इस प्रक्रिया में लोकल एनेस्थीसिया इस्तेमाल किया जाता है, जिससे मरीज को दर्द न हो.
यह है ट्रीटमेंट की दूसरी स्टेज
हेड फ्रेम लगाने के बाद मरीज का एमआरआई या सीटी स्कैन किया जाता है. कुछ केसेज जैसे AVM के इलाज में एंजियोग्राफी भी की जा सकती है. अब न्यूरोसर्जन, रेडिएशन ऑन्कोलॉजिस्ट और मेडिकल फिजिसिस्ट की मल्टीडिसिप्लिनरी टीम थ्रीडी कंप्यूटर सॉफ्टवेयर की मदद से ट्रीटमेंट प्लान तैयार करती है. इसमें तय किया जाता है कि रेडिएशन की कितनी डोज किन एंगल से देनी है, ताकि ट्यूमर को नष्ट किया जा सके.
इस स्टेज में होती है सर्जरी
प्लान बनने के बाद मरीज को गामा नाइफ मशीन में लाकर एक बेड पर लिटाया जाता है. उसका सिर मशीन के अंदर एक कोलिमेटर हेलमेट में फिक्स किया जाता है, जिसके बाद मशीन 192 गामा किरणों की सटीक बीम्स को ट्यूमर पर फोकस करती है. यह प्रक्रिया आमतौर पर 15 मिनट से एक घंटे तक चलती है. गामा नाइफ रेडियोसर्जरी को दुनिया भर में सुरक्षित और प्रभावी तकनीक माना जाता है.
ये भी पढ़ें: अपना लें ये पांच आसान डेली हैबिट्स, कम हो जाएगा हार्ट अटैक का खतरा
Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. आप किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.