छोटे बच्चे के दिमाग, फेफड़ों और दिल में माइक्रोप्लास्टिक का मौजूद होना धीरे-धीरे चिंता का विषय बनती जा रही है. एक अध्ययन के अनुसार पाया गया कि माइक्रोप्लास्टिक बच्चे के जन्म से पहले ही उसमें आ जाते हैं. एक पत्रिका में देखा गया कि प्रेग्नेंट चूहे माइक्रोप्लास्टिक के संपर्क में आकर सांस के जरिए ये कण उनके अंदर गए. बाद में ये कण उनके बच्चों में भी पाए गए. इस शोध से पता चलता है कि माइक्रोप्लास्टिक बच्चे में जन्म से पहले भी आ जाते हैं.
माइक्रोप्लास्टिक कैसे करते हैं स्वास्थ्य को प्रभावित
शोध से पता चलता है कि प्रेग्नेंट महिलाओं में माइक्रोप्लास्टिक प्लेसेंटा से होकर भ्रूण को प्रभावित कर सकता है. जिससे यह सीधे बच्चे को स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के खतरे में डाल सकता है. ये बच्चे के दिमाग, फेफड़ों और दिल में जमा हो जाते हैं, जो कई सारी स्वास्थ्य समस्याओं की वजह बन सकता है. इनका आकार 5 मिलीमीटर से भी छोटा होता है. इस विषय पर कई एक्सपर्ट्स ने चिंता जताई है. एक्सपर्ट्स का कहना है कि यह प्रेग्नेंट महिलाओं में मेडिकल डिवाइसेस के इस्तेमाल से भी हो सकता है. यह शरीर में खाना, पानी, हवा के जरिए जाता है. माइक्रोप्लास्टिक दिमाग और ब्लड के बीच में रुकावट पैदा करता है. जिससे ब्लड सर्कुलेशन काफी प्रभावित होता है. इसके कण लंबे समय तक शरीर में होने से कई तरह की बीमारियां हो सकती हैं-
कैंसर होने का खतरा- माइक्रोप्लास्टिक के कण छोटे-छोटे होते हैं. लंबे समय तक शरीर में रहने से कैंसर होने का खतरा बढ़ जाता है. इससे शरीर की सेल्स को नुकसान पहुंचता है. छोटे बच्चों में माइक्रोप्लास्टिक के कण धीरे-धीरे शरीर को प्रभावित करते हैं.
सूजन की समस्या- शोध में पाया गया है कि माइक्रोप्लास्टिक से शरीर में सूजन और अन्य समस्याएं पैदा हो सकती हैं. साथ ही यह प्रतिरक्षा प्रणाली को भी नुकसान पहुंचता है. माइक्रोप्लास्टिक शरीर में ROS को रिलीज करता है, जिससे सूजन और सेल्स प्रभावित होती हैं.
हार्मोन्स का संतुलित न होना- माइक्रोप्लास्टिक ऐसे कैमिकल्स पाये जाते हैं, जो मेटाबॉलिज्म, बच्चों की वृद्धि में रुकावट लाते हैं. इन कैमिकल्स को एंडोक्राइन डिसरप्टर के नाम से भी जाना जाता है.
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