पहलगाम हमले के बाद भारत-पाकिस्तान के बीच टेंशन बनी हुई है. वहीं दूसरी ओर ट्रंप की ट्रेड वॉर ने भी पूरी दुनिया में खलबली मचाई हुई है. हालांकि, इसके बावजूद पिछले एक हफ्ते में दुनिया के ज़्यादातर बड़े शेयर बाजारों में मजबूती देखी गई. भारत का निफ्टी 50, फ्रांस का CAC 40, जर्मनी का DAX, अमेरिका का डाउ जोंस, NASDAQ और जापान का निक्केई 225 जैसे इंडेक्स में अच्छी खासी बढ़त देखने को मिली.
लेकिन इस पूरे ग्लोबल तेजी के दौर में चीन का शंघाई कंपोजिट इंडेक्स अकेला ऐसा बड़ा इंडेक्स रहा जो गिरावट के साथ बंद हुआ. बड़ी बात ये है कि यह गिरावट केवल आंकड़ों की नहीं है, बल्कि यह दिखाती है कि चीन की अर्थव्यवस्था और बाजार में कुछ गंभीर अंतर्निहित समस्याएं हैं, जो निवेशकों के भरोसे को प्रभावित कर रही हैं.
भारत समेत दुनियाभर के बाजारों में मजबूती
अगर आंकड़ों की बात करें तो भारत का निफ्टी 50 पिछले हफ्ते +1.28 फीसदी, अमेरिका का NASDAQ +3.42 फीसदी, डाउ जोंस +3.00 फीसदी, जापान का निक्केई 225 +3.15 फीसदी, जर्मनी का DAX +3.80 फीसदी और फ्रांस का CAC 40 +3.11 फीसदी तक चढ़ा है. इसके अलावा हांगकांग का हैंग सेंग +2.38 फीसदी, दक्षिण कोरिया का KOSPI +0.53 फीसदी, और अमेरिका का S&P 500 +2.92 फीसदी भी ऊपर गया. इन आंकड़ों से साफ है कि वैश्विक आर्थिक धारणा सकारात्मक रही और निवेशकों का रुझान जोखिम लेने की ओर बढ़ा है. दुनिया भर में तकनीकी शेयरों, बैंकिंग और उपभोक्ता सेक्टर में अच्छी खरीदारी देखने को मिली है.
अकेला पिछड़ता चीन का शेयर बाजार
इन सबसे अलग, चीन का शंघाई कंपोजिट इंडेक्स -0.49 फीसदी गिर गया, जो बताता है कि चीन के शेयर बाजार में निवेशकों को नुकसान हुआ. सवाल उठता है कि जब बाकी सारे बाजार तेजी दिखा रहे हैं तो चीन में ऐसा क्या हुआ कि बाजार नीचे आ गया?
चीन की अर्थव्यवस्था की चुनौतियां
एक्सपर्ट के अनुसार, इसकी पहली बड़ी वजह चीन की अर्थव्यवस्था में चल रही सुस्ती है. वहां के प्रॉपर्टी सेक्टर में भारी मंदी है. बड़े रियल एस्टेट डेवलपर्स कर्ज़ के बोझ में दबे हैं और नए प्रोजेक्ट्स ठप पड़ चुके हैं. इसके साथ ही आम लोग भी खर्च करने से बच रहे हैं, जिससे घरेलू मांग कमजोर पड़ रही है.
दूसरी बड़ी समस्या है भू-राजनीतिक तनाव. अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों के साथ चीन के संबंध लगातार तनावपूर्ण बने हुए हैं. इससे निवेशकों को डर लग रहा है कि कहीं भविष्य में और प्रतिबंध या व्यापारिक अड़चनें ना आ जाएं.
चीन सरकार की नीतियों पर भी सवाल
चीन की सरकार द्वारा अपनाई गई कुछ नीतियों ने भी बाजार की धारणा को प्रभावित किया है. टेक्नोलॉजी कंपनियों पर लगाम कसने से लेकर निजी क्षेत्र पर सख्ती तक, कई कदम ऐसे हैं जो निवेशकों को असहज करते हैं. इसके चलते विदेशी निवेशक चीन की बजाय अन्य उभरते बाजारों में पैसा लगा रहे हैं.
ग्लोबल और लोकल का फर्क
इस पूरी स्थिति से एक बात साफ होती है कि वैश्विक आर्थिक गतिविधियों का हर देश पर एक जैसा असर नहीं होता. जबकि अमेरिका, भारत, यूरोप और एशियाई देशों के अधिकांश बाजारों ने अच्छी रिकवरी दिखाई है, चीन अभी भी दबाव में है. इसका असर सिर्फ निवेशकों के रिटर्न पर नहीं बल्कि चीन की वैश्विक आर्थिक स्थिति पर भी पड़ेगा. अगर जल्द सुधार नहीं हुआ तो यह गिरावट और गहरी हो सकती है.
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