Kanya Pujan: कुमारी पूजा दुर्गा पूजा महोत्सव का एक अहम और श्रद्धापूर्ण अनुष्ठान है, जिसमें छोटी कन्याओं को देवी दुर्गा के स्वरूप में पूजित किया जाता है. यह परंपरा भारतभर में उल्लासपूर्वक मनाई जाती है. पश्चिम बंगाल में यह महाअष्टमी पर संपन्न होती है, जबकि अन्य क्षेत्रों में इसे नवमी तिथि को किया जाता है. उत्तर भारत में इसे ‘कन्या पूजन’ कहा जाता है, जो नवरात्रि के आठवें या नौवें दिन मनाया जाता है. इसे ‘कंजक पूजा’ भी कहते हैं, जिसमें नौ कन्याओं को नवदुर्गा के रूप में पूजा जाता है.
कन्या पूजा का महत्व (Kanya Pujan Significance)
मां दुर्गा का कुमारी स्वरूप अत्यंत शुभ और पावन माना जाता है, क्योंकि इसे सृष्टि की आधारशिला समझा जाता है. देवी का आशीर्वाद पाने के लिए कुमारी पूजन को श्रेष्ठ साधन माना जाता है. छोटी कन्याओं की पूजा और सत्कार से वे आनंदित होती है, जिससे देवी भी प्रसन्न होती हैं. यह अनुष्ठान न केवल देवी दुर्गा की आराधना का माध्यम है, बल्कि समाज में नारी शक्ति और पवित्रता के प्रति सम्मान का प्रतीक भी है.
नवरात्रि में कुमारी पूजन का विशेष महत्व होता है, जिसमें 2 से 10 वर्ष की कन्याओं की पूजा की जाती है, क्योंकि वे मां दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों का प्रतीक मानी जाती हैं. देवी भगवत पुराण के अनुसार, जन्म के एक वर्ष बाद कन्याओं को कुंवारी कहा जाता है और उनकी आयु के अनुसार उन्हें अलग-अलग देवी स्वरूपों से जोड़ा जाता है. दो वर्ष की कन्या को कुमारी, तीन वर्ष की को त्रिमूर्ति, चार वर्ष की को कल्याणी, पांच वर्ष की को रोहिणी, छह वर्ष की को कलिका, सात वर्ष की को चंडिका, आठ वर्ष की को शाम्भवी, नौ वर्ष की को दुर्गा और दस वर्ष की कन्या को सुभद्रा का रूप माना जाता है.
धार्मिक ग्रंथों में तीन से दस वर्ष की कन्याओं को साक्षात शक्ति का स्वरूप कहा गया है. दुर्गा सप्तशती में भी उल्लेख मिलता है कि मां दुर्गा की पूजा से पहले कन्या पूजन करना चाहिए, क्योंकि ये नारी शक्ति और सृजन का प्रतीक होती हैं. इसलिए, नवरात्रि में कन्या पूजन कर उन्हें सम्मान देने से मां दुर्गा की कृपा प्राप्त होती है और घर-परिवार में सुख-समृद्धि आती है.
कन्या पूजा की विधि (Kanya Pujan Vidhi)
कन्याओं को निमंत्रण दें – नवरात्रि के महाअष्टमी या नवमी के दिन कुमारी पूजन के लिए एक दिन पहले ही कन्याओं को आदरपूर्वक आमंत्रित करें.
आदर और स्वागत करें – जब कन्याएं आएं, तो उन्हें प्रेमपूर्वक नियत स्थान पर बैठाएं और फूलों की वर्षा कर उनका स्वागत करें.
पवित्र स्नान और वस्त्र पहनाएं – कुमारी को पहले पवित्र जल से स्नान कराएं और फिर उसे सुंदर लाल चुनरी पहनाएं.
श्रृंगार करें – कन्याओं को फूलों और गहनों से सजाएं. माथे और पैरों पर सिंदूर का तिलक लगाएं.
पूजा और मंत्रोच्चार करें –
“ॐ कौमार्यै नमः” मंत्र का जाप करते हुए पंचोपचार पूजा करें.
देवी दुर्गा के हाथ से एक पवित्र फूल कन्या के हाथ में रखें.
भोग अर्पण करें – कन्याओं को उनकी पसंद का भोजन कराएं, जिसमें मीठा अवश्य हो.
पाद प्रक्षालन और तिलक करें – भोजन के बाद कन्याओं के पैर धोकर विधिवत कुमकुम का तिलक करें.
दक्षिणा और आशीर्वाद लें –
कन्याओं को दक्षिणा दें और प्रार्थना करें –
“जगत की पूजनीय माता, आप हमारी पूजा स्वीकार करें.”
उनके चरणों में फूल अर्पित करें और उन्हें उपहार देकर ससम्मान विदा करें.
कन्या पूजा के लाभ –
दरिद्रता दूर होती है.
शत्रुओं पर विजय मिलती है.
धन, आयु, विद्या और समृद्धि प्राप्त होती है.
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