अब निजी स्कूलों में मनमर्जी से फीस नहीं बढ़ाई जा सकेगी. दिल्ली सरकार एक नया नियम लागू करने जा रही है, जिसके तहत तीन स्तरीय निगरानी व्यवस्था बनाई जाएगी. फीस बढ़ाने से पहले स्कूलों को कई स्तरों पर स्वीकृति लेनी होगी और इसमें अभिभावकों की राय को भी अहमियत दी जाएगी.
इस व्यवस्था के तहत सबसे पहले स्कूल स्तर पर एक 10 सदस्यीय फीस रेगुलेशन कमेटी बनाई जाएगी. यह समिति स्कूल प्रबंधन के साथ-साथ 5 अभिभावकों को भी शामिल करेगी. समिति में अनुसूचित जाति और महिला प्रतिनिधियों की मौजूदगी जरूरी होगी. यह कमेटी स्कूल की इमारत, संसाधन, स्टाफ और कुल 18 बिंदुओं पर विचार कर तय करेगी कि फीस बढ़ाना जरूरी है या नहीं. यह कमेटी हर वर्ष 21 जुलाई तक गठित की जाएगी और इसके पास अपनी रिपोर्ट देने के लिए 21 दिन का समय होगा. समिति का निर्णय तीन वर्षों तक मान्य होगा. यानी बार-बार फीस बढ़ाने की कोशिश नहीं की जा सकेगी.
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कैसे होगा फैसला
अगर स्कूल स्तर की समिति समय पर निर्णय नहीं दे पाती या उसमें विवाद होता है, तो मामला जिला स्तरीय समिति के पास जाएगा. जिसकी अध्यक्षता डिप्टी डायरेक्टर ऑफ एजुकेशन करेंगे. यहां पर फिर से सुनवाई होगी और यदि 45 दिन के भीतर भी फैसला नहीं होता तो मामला राज्य स्तरीय समिति को सौंप दिया जाएगा. राज्य स्तरीय समिति में 7 सदस्य होंगे, जो आखिरी फैसला देंगे. इतना ही नहीं यदि स्कूल स्तर की समिति के फैसले से 15 फीसदी या उससे अधिक अभिभावक असहमत होते हैं तो वे सीधे जिला समिति में अपील कर सकते हैं.
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क्या बोलीं सीएम?
दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने कहा कि स्कूल फीस को लेकर कोई भी प्रावधान नहीं था. मगर अब दिल्ली सरकार ने एक ऐतिहासिक फैसला लिया है. आज कैबिनेट में ड्राफ्ट बिल पास किया गया है, जिसमें सभी प्राइवेट स्कूलों में फीस को लेकर गाइडलाइन तय की जाएगी.
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